आबकारी नीति : कारोबारियों के गले में घुटना रखने के समान..

 आबकारी मंत्री के बंगले का भी घेराव  ,जगदीश देवड़ा को ज्ञापन , नई आबकारी नीति का विरोध ..

प्रदेश में शराब को लेकर बैसे भी जमकर बबाल मचा हुआ है ! भाजपा और काँग्रेस दोनों आमने सामने जंग के लिए तैयार बैठी है ! आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है ! सरकार की इस मामले में भद्द पिट रही है ! कांग्रेस सरकार पर 20 फीसदी टेक्स कम करने को लेकर आक्रमक रुख अख्तियार किये हुए है , वहीं दूसरी तरफ आम जनता जिसमे खासकर महिलाओं का कहना है की सरकार को अगर जनता को राहत ही देनी थी तो वह डीजल पेट्रोल के दाम 20 फीसदी कम करती ,जिससे महंगाई कम होती और आम जनता को राहत मिलती ! दारु के भाव कम कर देने से नशाखोरी को एक तरह से बढ़ावा देना है ! घरेलू हिंसा के साथ-साथ  अपराधो में भी इजाफा होना लाजमी है ! मामा एक तरफ नई शराब दूकान नही खोलने की बात करते है और दूसरी ओर शराब की कीमतों में 20 फीसदी की कटौती कर प्रदेश की जनता को अप्रत्यक्ष रूप से नशेडी बना रहे है ! ये कैसी सरकार है ?

मध्यप्रदेश शराब ठेकेदार संघ द्वारा नई आबकारी नीति और कल शाम से शराब दुकानों पर चल रही छापामार से शराब लाबी आक्रोशित और लामबंद हो गई है , जिसको लेकर प्रदेश के आबकारी मंत्री के बंगले का भी घेराव भी किया गया

दूसरी तरफ आबकारी नीति को लेकर अव्यवहारिक नीति निर्धारण के कारण भट्टा पिट सकता है ! दुकान संचालन के डेढ़ माह पहले से ही 100 प्रतिशत बैंक ग्यारंटी जमा करने का आदेश बिलकुल ही अव्यवहारिक और अन्यायपूर्वक है !

प्रदेश में वित्तीय वर्ष (2022-23) की आबकारी नीति सरकार का कितना खजाना भरेगी यह तो वक्त बताएगा ? मगर व्यावसायिक दृष्टिकोण से हाल फिलहाल में अव्यवहारिक तौर पर जोर जबरजस्ती वाले निर्णय विभाग को भारी पड़ सकते है। दुकानों के कागजो पर आवंटन होने वाले दिन से मात्र दस दिनों में पूर्ण राशि जमा करने का आदेश शराब कारोबारियों का गला घोंटने के समान होगा।

लगभग डेढ़ माह बाद 1 अप्रेल को नए सिरे से संचालित होने वाली शराब दुकानो की आवंटन प्रक्रिया में करोड़ो का राजस्व सरकार को दिलाने वाले शराब कारोबारियों का आर्थिक रूप से गला घोंटने जैसा आदेश आबकारी विभाग द्वारा जारी किया जा रहा है जो पॉलिसी की सफलता के लिए नीतिगत रूप से उचित नहीं होगा।

दो चरणों में ही धड़ाम से गिरी आबकारी पॉलिसी आगामी आवंटन प्रक्रिया (रिनिवल व टेंडर) में और भी बुरे दौर से गुजरने की संभावना है।

तयशुदा समय से काफी पहले टेंडर प्रक्रिया शुरू होने के कारण पूर्व में जिन ठेकेदारों द्वारा दुकानों का संचालन किया जा रहा है उनके सामने प्रतिभूति राशि जमा करने हेतु बड़ी समस्या खड़ी होना स्वाभाविक है। यह भी एक कारण है छोटे समूह व कंपोजिट शॉप होने के बावजूद शराब ठेकेदारों की टेंडर प्रक्रिया में रुचि नही जाग पाई है। पुराने व जमे हुए ठेकेदारों के साथ ही शराब व्यवसाय में नई शुरवात करने वाले कारोबारियों के लिए भी आर्थिक तौर पर दबाव होने के कारण बड़ी मुसीबत इस नीति के तहत देखने को मिल रही है।

आवंटन के डेढ़ माह पूर्व से ही कुल 15 प्रतिशत राशि (बेसिक लाइसेंस फीस व प्रतिभूति राशि) के भुगतान के बाद सरकार के राजस्व में प्रतियोगी बढ़ोतरी करने में सहायक छोटे शराब कारोबारियों की कमर तो सरकार पहले ही तोड़ चुकी होगी। फिर आगामी चरणों मे होने वाली प्रक्रिया में नए शराब कारोबारियों को कहाँ से जन्म दिया जाएगा इस सच्चाई को भोपाल में बैठे उच्च अधिकारियों को बताने के मामले में सभी ने चुप्पी साधी हुई है।

कागजो पर आवंटन के 10 दिनों में 100 प्रतिशत प्रतिभूति राशि(बैंक ग्यारंट) जमा करवाने का आदेश ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार सोने अंडा देने वाली मुर्गी को एक बार में ही हलाल करना चाहती है। या विभाग के अधिकारी ही उक्त पॉलिसी को फेल करवाकर विभाग प्रमुख को सबक सिखाना चाहते है।