असंवेदनशीलता मूर्खता के दर्द को समाप्त कर देती है …. प्रो. अमर सिंह

कोरोना महामारी के अवसाद से छात्रों को बाहर निकालने को लेकर शिक्षकों के प्रभावी व्यक्तित्व प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य प्रेरक वक्ता प्रो. अमर सिंह ने कहा कि शिक्षक छात्रों को कोरोना त्रासदी के मानसिक कारागृह से बाहर निकालकर अद्भुत कार्य कर सकते हैं।चरित्र की परख त्रासदी से जूझने की गुणवत्ता से निश्चित होती है। निज सीमा तोड़ने से आत्मविश्वास बढ़ता है। उत्कृष्टता सद्कर्मों के निवेश से आती है। अंत में कार्य सिद्धि परिणाम ही मायने रखते हैं। अवसर को लपककर मन की जमीं से धूल हटाना चाहिए। अपने सपने के एवरेस्ट को खोज खुद करनी पड़ती है।विचारों की प्रचंड शक्ति से स्वयं में नायक तलाश करें। तनाव का सदुपयोग कर कायरता को परास्त किया जा सकता है। प्रतिकूल प्रतिक्रिया देकर हैं स्वयं भी तनाव के शिकार हो जाते हैं। शिक्षक अपने छात्रों के साथ स्वयं सृजनकर्ता बनें। असंभव एक विचार भर होता है  ….प्रो. अमर सिंह

हर पल हमारा ही वक्त है। वर्तमान व इच्छित जीवन के बीच का अंतर दारुण दुख का कारण बनता है। प्रेम का अभाव समस्याओं की जड़ बनता है।अहंकार असंवेदनशीलता मूर्खता के दर्द को समाप्त कर देती है। नापसंद चीजों से सच्ची प्रेरणाएं मिलती हैं। लक्ष्य से भावनाएं जोड़कर दिमाग के घोड़े दौड़ाए जा सकते हैं। हमें हर क्षण सौ प्रतिशत देना चाहिए। योग शक्ति को तीन गुना कर देता है।उपलब्धियों की बात परिणाम के माध्यम से आनी चाहिए, शोर मचाके नहीं।एक गलती के पीछे दस गुना काम करना चाहिए। काल्पनिक फिनिशिंग लाइन के उस पार अनंत होता है।सक्षमता से अपनी नस्ल को अगले स्तर पर ले जाया जा सकता है। प्रेम प्रेरित कार्यों को न्यूनतम प्रयासों की जरूरत होती है।समाधान व्यवधानों में ही होता है।सिर्फ उन्हें क्रम से जमाना पड़ता है। हम वाह्य प्रदर्शन करके आत्म दर्शन से वंचित हो जाते हैं। दूसरों पर प्रभाव डालना ही वेशकीमती होता है। कुछ करने के डर से नफरत करना चाहिए। सब कुछ इस पल में लिए फैसलों में ही समाहित होता है। सादगी परम जटिल किंतु बहुत ताकतवर होती है। उलझनें जिस स्तर पर जन्म लें , उसी स्तर पर सुलझाना चाहिए। अनावश्यक स्मृतियों,घटनाओं व अपवाहों से दिमाग का कबाड़ा बन जाता है। कठिन समय में हमें अपनी जड़ें मजबूत करना चाहिए।
ऊर्जा और पदार्थ की अंतःक्रिया से जग रचना होती है। ठान लो तो कोई देरी नहीं होती है।
मंतव्य पर जीवन का गंतव्य निश्चित होता है।
सोच को प्रगतिशील बनाकर बुलंद ऊंचाइयां को छुआ जा सकता है। हम जो हैं नहीं, उसे बनने में सारी मेहनत लगाते हैं। हमारा बनना स्वयं हम तय करें, न कि कोई और।ग्रहण करने की क्षमता सेचीजें हम तक पहुंचती हैं।सूरज रात की कोख में होता है। हर रात की सुबह होती है कोई रात बांझ नहीं होती है। हमें किसी और की जिंदगी जीने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए। स्कूल डायरेक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि अभ्यास ज्ञान के खजाने की कुंजी होती है। दृढ़ रहकर, चिंता न करके अंदर के वहम को खोज करना चाहिए। वहम विफलता का शुभारंभ होता है कमजोरी हमारे दिमाग की मनःस्थिति होती है। प्राचार्य यशवंतराव भायदे ने कहा कि इंसान की तरह जन्म लेने, देवता की तरह जी औरने भगवान की तरह मरने के लिए बने हैं।अपनी नियति खुद निर्धारित करनी चाहिए।दुख पर अटकना नहीं चाहिए। हम दिव्य शक्तियों का केंद्र बन सकते हैं।कर्म सबसे पवित्र क्रिया है। आयुष सिंह ने कहा कि हमारे होने और बनने का यकीन अंदर से आता है।अगर वाह्य आवरण हटेगा तो ज्ञान वृद्धि होगी। चीजों का उपार्जन हर मुकाम हासिल करना पड़ता है।आत्मा से आवरण हटाना ही आविष्कार होता है। अंततः हमें मानसिक कारागृह से स्वयं बाहर आना पड़ता है।